बढ़ता वैश्विक तापमान सरीसृप प्रजातियों के प्रजनन और विकासवादी प्रक्रियाओं को गहराई से प्रभावित कर रहा है। हालिया शोध से पता चलता है कि ऊंचे इनक्यूबेशन तापमान न केवल नर सरीसृपों में लिंग परिवर्तन (sex reversal) का कारण बन सकते हैं, बल्कि गुइबे के ग्राउंड गेको (Guibé's ground gecko) जैसी प्रजातियों में अर्धसूत्रीविभाजन (meiosis) के दौरान आनुवंशिक पुनर्संयोजन (genetic recombination) को भी बाधित कर सकते हैं, जिससे डीएनए विखंडन और संभावित जीनोमिक अस्थिरता हो सकती है।
कई सरीसृप प्रजातियों में, जैसे कि कछुए, मगरमच्छ और कुछ छिपकलियाँ, अंडे के इनक्यूबेशन का तापमान ही संतान का लिंग निर्धारित करता है। इस प्रक्रिया को तापमान-निर्भर लिंग निर्धारण (Temperature-Dependent Sex Determination - TSD) कहा जाता है। आमतौर पर, उच्च तापमान अधिक मादाओं को जन्म देता है, जबकि ठंडे तापमान अधिक नर उत्पन्न करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि इस प्राकृतिक तंत्र को असंतुलित कर रही है, जिससे सरीसृप आबादी में लिंगानुपात (sex ratio) बिगड़ रहा है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलियाई सेंट्रल बार्डेड ड्रैगन (Central bearded dragon) में, यदि नर क्रोमोसोम वाले अंडे 32 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक पर सेए जाते हैं, तो वे मादा के रूप में विकसित होते हैं। ये लिंग-परिवर्तित मादाएं कार्यात्मक रूप से मादा होती हैं और सफलतापूर्वक प्रजनन भी करती हैं, लेकिन उनमें कई नर लक्षण बने रहते हैं। यह घटना, जो जंगली आबादी में भी देखी गई है, प्रजातियों के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती है क्योंकि इससे प्रजनन के लिए नर की उपलब्धता कम हो जाती है।
इसके अतिरिक्त, गुइबे के ग्राउंड गेको पर किए गए शोध से पता चलता है कि उच्च तापमान न केवल जीन अभिव्यक्ति को बदलते हैं, बल्कि अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान आनुवंशिक पुनर्संयोजन को भी बाधित करते हैं। यह व्यवधान डीएनए विखंडन और गुणसूत्र संरचना में परिवर्तन के रूप में प्रकट होता है, जो गुणसूत्रों के युग्मन (pairing) और क्रॉसओवर (crossover) निर्माण को प्रभावित करता है। यह प्रक्रिया आनुवंशिक विविधता के लिए महत्वपूर्ण है, और इसमें व्यवधान जीनोमिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है, जिससे प्रजातियों की अनुकूलन क्षमता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि उच्च और निम्न दोनों तापमानों में हाइपर-सीओ (hyper-COs) शुक्राणुकोशिकाएं (spermatocytes) मौजूद होती हैं, जो क्रॉसओवर की संख्या में वृद्धि से जुड़ी होती हैं। यह वृद्धि गुणसूत्र अक्ष की लंबाई में कमी और अर्धसूत्रीविभाजन के बाद के चरणों में डीएनए डबल-स्ट्रैंड ब्रेक (DSBs) के बढ़े हुए स्तरों से जुड़ी है।
सरीसृप, अपनी एक्टोथर्मिक (ectothermic) प्रकृति के कारण, बाहरी तापमान पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित तापमान में वृद्धि उनके लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। हालांकि सरीसृप फेनोटाइपिक प्लास्टिसिटी (phenotypic plasticity) और कुछ हद तक आनुवंशिक अनुकूलन (genetic adaptation) के माध्यम से तापमान परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन की तीव्र गति उनकी अनुकूलन क्षमता को चुनौती दे सकती है। कुछ प्रजातियां, जैसे कि लीओलाइस (Liolaemus) छिपकलियाँ और बेंट-टोएड गेको (bent-toed geckos), अपने पर्यावरण में भिन्नता के प्रति प्रतिक्रिया करने में सक्षम हैं, लेकिन यदि वे पहले से ही पर्यावरणीय चरम सीमाओं पर नहीं जी रही हैं तो ही यह संभव है। यह शोध सरीसृपों के भविष्य के अस्तित्व और विकासवादी पथों की भविष्यवाणी करने के लिए महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझना न केवल इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए आवश्यक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे पर्यावरणीय कारक जीवन के मूलभूत आनुवंशिक और प्रजनन तंत्र को आकार दे सकते हैं। यह प्रकृति के जटिल संतुलन और जीवन की अंतर्संबंधिता का एक प्रमाण है, जो हमें बदलते परिवेश में अनुकूलन और लचीलेपन के महत्व की याद दिलाता है।