प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अगस्त से 1 सितंबर, 2025 तक चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन 2025 में भाग लिया। यह सात वर्षों में चीन की उनकी पहली यात्रा थी, जो द्विपक्षीय संबंधों में संभावित सुधार का संकेत देती है। इस शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई का आह्वान किया और कहा कि आतंकवाद से निपटने में कोई दोहरा मापदंड स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होंने विशेष रूप से अप्रैल 2025 में हुए पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख किया, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे, और कहा कि भारत पिछले चार दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है।
एससीओ शिखर सम्मेलन में 20 से अधिक देशों के नेताओं ने भाग लिया, जिनमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शामिल थे। यह आयोजन संगठन के इतिहास में सबसे बड़ा था, जो सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में इसके महत्व को रेखांकित करता है। इस शिखर सम्मेलन में एससीओ विकास बैंक की स्थापना का भी निर्णय लिया गया, जिसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच वित्तीय लचीलापन बढ़ाना और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना है। चीन ने एससीओ देशों को सहायता और ऋण के रूप में अरबों डॉलर देने का वादा किया, साथ ही 'वैश्विक शासन पहल' को बढ़ावा दिया और 'बदमाशी'पूर्ण प्रथाओं की आलोचना की, जिससे चीन एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के रक्षक के रूप में उभरा।
प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं, जिसमें आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा हुई। आतंकवाद का मुकाबला करने, व्यापार को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय बुनियादी ढांचे के विकास जैसे विषयों पर भी विचार-विमर्श हुआ। भारत की सक्रिय भागीदारी बहुपक्षीय सहयोग में उसकी पुन: स्थिति को दर्शाती है। इस शिखर सम्मेलन ने एससीओ को यूरेशियाई सुरक्षा, व्यापार और राजनीतिक संवाद के प्रबंधन में एक अनिवार्य खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है, जो वैश्विक मामलों में क्षेत्र की बढ़ती केंद्रीयता को रेखांकित करता है।
यह यात्रा भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। दोनों देशों के नेताओं ने व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ावा देने तथा साझा चुनौतियों का मुकाबला करने पर सहमति व्यक्त की। यह कदम अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ के संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। भारत ने एससीओ के ढांचे के तहत सहयोग को मजबूत करने के लिए सुरक्षा, कनेक्टिविटी और अवसर जैसे तीन स्तंभों पर अधिक कार्रवाई की मांग की। कनेक्टिविटी को विकास को बढ़ावा देने और विश्वास बनाने में महत्वपूर्ण बताते हुए, प्रधानमंत्री ने चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे जैसी परियोजनाओं के प्रति भारत के मजबूत समर्थन को दोहराया।
एससीओ शिखर सम्मेलन ने वैश्विक शासन में सुधार और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की आवश्यकता पर भी जोर दिया। सदस्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन के सिद्धांतों के विपरीत एकतरफा जबरन उपायों, जिसमें आर्थिक प्रतिबंध भी शामिल हैं, का विरोध किया। यह शिखर सम्मेलन वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच एकजुटता का एक प्रमुख प्रदर्शन था, जो अमेरिका और पश्चिमी प्रभुत्व का सामना कर रहे हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एससीओ देशों के नेताओं से क्षेत्रीय और वैश्विक शांति तथा स्थिरता की रक्षा में बड़ी भूमिका निभाने का आह्वान किया। यह शिखर सम्मेलन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है, जो एससीओ के साथ जुड़ाव को संतुलित करते हुए स्वतंत्र स्थिति बनाए रखता है।