चिली में प्राचीन अवशेषों में कुष्ठ रोग की खोज ने इस बीमारी के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर नई रोशनी डाली है। लगभग 4,000 वर्ष पुराने अवशेषों में कुष्ठ रोग के प्रमाण मिले हैं, जो बताते हैं कि यह बीमारी यूरोपीय उपनिवेशीकरण से पहले ही अमेरिका में मौजूद थी । यह खोज न केवल कुष्ठ रोग के इतिहास को पुनर्परिभाषित करती है, बल्कि प्राचीन समाजों में इसके सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में भी महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। कुष्ठ रोग, जिसे हैंसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है, लंबे समय से सामाजिक कलंक और भेदभाव से जुड़ा हुआ है । ऐतिहासिक रूप से, इस बीमारी से पीड़ित लोगों को अलग-थलग कर दिया जाता था और समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था। यह खोज दर्शाती है कि प्राचीन चिली के समाजों में भी इसी तरह की सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाएँ मौजूद हो सकती थीं। मानसिक असर और सामाजिक बहिष्कार कुष्ठ रोग के सबसे खतरनाक प्रभाव हैं । मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ कॉर्डोबा के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए आनुवंशिक अध्ययनों से पता चला है कि चिली के लोगों की हड्डियों में माइकोबैक्टीरियम लेप्रोमैटोसिस नामक कुष्ठ रोग का एक दुर्लभ रूप पाया गया है। यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि पहले यह माना जाता था कि कुष्ठ रोग यूरोपीय उपनिवेशवादियों द्वारा अमेरिका में लाया गया था । इस खोज के बाद, शोधकर्ताओं का मानना है कि प्राचीन अमेरिका में कुष्ठ रोग के और प्रमाण मिल सकते हैं । इस खोज के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक निहितार्थ गहरे हैं। प्राचीन समाजों में, कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों और उनके परिवारों को किस प्रकार की सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता था? क्या उन्हें भेदभाव, अलगाव और कलंक का सामना करना पड़ता था? क्या इस बीमारी के कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती थीं? इन प्रश्नों के उत्तर हमें प्राचीन समाजों में स्वास्थ्य और बीमारी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं। भेदभाव और सामाजिक अस्वीकृति का निरंतर भय मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है, जिससे चिंता, अवसाद और कम आत्मसम्मान पैदा हो सकता है । आज भी, कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक और भेदभाव दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में दुनिया भर में 15 मिलियन लोगों को कुष्ठ रोग से मुक्त किया गया है । फिर भी, भारत, चीन, रोमानिया, मिस्र, नेपाल, सोमालिया, लाइबेरिया, वियतनाम और जापान जैसे देशों में आज भी कुष्ठ रोग बस्तियां मौजूद हैं । कुष्ठ रोग से जुड़ा सदियों पुराना सामाजिक-कलंक अनेक क्षेत्रों में आज भी मौजूद है । इसलिए, कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इस बीमारी से जुड़े कलंक को दूर करना महत्वपूर्ण है। चिली में प्राचीन कुष्ठ रोग की खोज हमें यह याद दिलाती है कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारक स्वास्थ्य और बीमारी के अनुभव को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस खोज से हमें प्राचीन समाजों में कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के जीवन को बेहतर ढंग से समझने और आज भी मौजूद कलंक और भेदभाव को दूर करने के लिए प्रेरित होना चाहिए।
प्राचीन चिली में कुष्ठ रोग: सामाजिक-मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
द्वारा संपादित: Dmitry Drozd
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