नवीनतम शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि दीर्घकालिक तनाव और धूम्रपान के बीच एक गहरा संबंध है। अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग लगातार तनाव में रहते हैं, वे धूम्रपान करने की अधिक संभावना रखते हैं, और यह एक ऐसा चक्र बनाता है जिससे बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है। निकोटीन की लत अस्थायी राहत प्रदान करती है, लेकिन इसके बाद होने वाली वापसी के लक्षण तनाव को और बढ़ा देते हैं, जिससे व्यक्ति फिर से सिगरेट की ओर आकर्षित होता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में किए गए एक महत्वपूर्ण अनुदैर्ध्य अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि पारिवारिक, वित्तीय और कार्य-संबंधी मनोवैज्ञानिक तनाव, लगातार धूम्रपान करने और धूम्रपान छोड़ने के असफल प्रयासों से दृढ़ता से जुड़े हुए हैं। इस अध्ययन में पाया गया कि उच्च तनाव का स्तर, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, धूम्रपान जारी रखने की संभावना को लगभग दोगुना कर देता है। यह दर्शाता है कि तनाव केवल एक ट्रिगर नहीं है, बल्कि धूम्रपान की लत को बनाए रखने में एक प्रमुख कारक है।
इसके अतिरिक्त, तनाव प्रतिक्रियाएं और ध्यान केंद्रित करने में आने वाली बाधाएं भी धूम्रपान छोड़ने के बाद दोबारा लत लगने की दर से जुड़ी हुई हैं। जिन व्यक्तियों में तनाव-प्रेरित जोखिम लेने या ध्यान भटकने की प्रवृत्ति होती है, वे धूम्रपान छोड़ने के बाद फिर से इस आदत में पड़ सकते हैं, खासकर युवा वयस्कों में यह पैटर्न अधिक देखा गया है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि धूम्रपान स्वयं तनाव का एक कारण बन सकता है, न कि केवल उससे राहत का साधन। निकोटीन मस्तिष्क में डोपामाइन जैसे रसायनों को अस्थायी रूप से जारी करता है, जिससे सुखद अनुभूति होती है, लेकिन यह एक चक्र बनाता है जहाँ शरीर निकोटीन की कमी होने पर और अधिक तनाव महसूस करता है, जिससे बार-बार सिगरेट पीने की इच्छा होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि धूम्रपान छोड़ने की प्रक्रिया में तनाव प्रबंधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। माइंडफुल ब्रीदिंग (ध्यानपूर्वक सांस लेना), छोटी शारीरिक गतिविधियां और पर्याप्त मात्रा में पानी पीना जैसी तकनीकें इस चक्र को तोड़ने में सहायक हो सकती हैं। यह भी पाया गया है कि धूम्रपान छोड़ने से न केवल कैंसर जैसे गंभीर रोगों का खतरा कम होता है, बल्कि समय के साथ तनाव का स्तर भी कम होता है, जिससे मूड में सुधार होता है और चिंता घटती है।
एक दिलचस्प शोध यह भी बताता है कि अकेलापन और तनाव जैसे मनोवैज्ञानिक कारक, धूम्रपान के प्रभाव के समान ही, व्यक्ति की जैविक आयु को बढ़ा सकते हैं, जो दर्शाता है कि तनाव का हमारे समग्र स्वास्थ्य पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है। धूम्रपान छोड़ने का निर्णय न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक कल्याण को भी बढ़ावा देता है। तनाव को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करके और स्वस्थ मुकाबला तंत्र विकसित करके, व्यक्ति धूम्रपान के दुष्चक्र से बाहर निकल सकता है और एक अधिक संतुलित जीवन जी सकता है। यह एक ऐसी यात्रा है जो न केवल शारीरिक बीमारियों से मुक्ति दिलाती है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में भी उल्लेखनीय सुधार लाती है।