अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने 23 जुलाई, 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें कहा गया कि सभी देशों पर जलवायु परिवर्तन से लड़ने और वर्तमान तथा भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा करने की कानूनी बाध्यता है। इस निर्णय ने एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की है, जो वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए एक नई दिशा प्रदान करती है। यह निर्णय वानुअतु की पहल पर आधारित था, जिसे 130 से अधिक देशों का समर्थन प्राप्त था।
ICJ ने जलवायु परिवर्तन को "तत्काल और अस्तित्वगत खतरा" घोषित किया और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। न्यायालय ने यह भी पुष्टि की कि "स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ वातावरण" एक मौलिक मानवाधिकार है। इस निर्णय के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से निपटने में विफलता के परिणामस्वरूप हर्जाना भी देना पड़ सकता है।
ICJ के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। यह न केवल देशों को उनकी जलवायु संबंधी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत इन दायित्वों का उल्लंघन करने पर कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। यह निर्णय विशेष रूप से उन छोटे द्वीप राष्ट्रों के लिए महत्वपूर्ण है जो समुद्र के बढ़ते स्तर और चरम मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित हैं, जबकि उन्होंने उत्सर्जन में बहुत कम योगदान दिया है।
वानुअतु के जलवायु परिवर्तन मंत्री राल्फ रेजेनवानु ने इस निर्णय को "जलवायु कार्रवाई के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर" बताया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय जलवायु न्याय की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ है और यह दुनिया भर के देशों को अधिक मजबूत कार्रवाई और जवाबदेही के लिए प्रेरित करेगा। यह निर्णय न केवल सरकारों को बल्कि निगमों को भी उनके पर्यावरणीय प्रभाव के लिए जवाबदेह ठहराने की दिशा में एक कदम है।
यह फैसला पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को एक कानूनी बेंचमार्क के रूप में स्थापित करता है और देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) को उच्चतम महत्वाकांक्षा के साथ प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह निर्णय भविष्य के जलवायु संबंधी मुकदमों और अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी आधार प्रदान करेगा, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों को और अधिक बल मिलेगा।