एमआईटी (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) के शोधकर्ताओं ने निकेल आयोडाइड (NiI₂) नामक द्वि-आयामी (two-dimensional) क्रिस्टल में 'पी-वेव मैग्नेटिज्म' नामक चुंबकत्व के एक बिल्कुल नए रूप की प्रायोगिक पुष्टि की है। यह खोज इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में क्रांति लाने की क्षमता रखती है, विशेष रूप से स्पिंट्रॉनिक्स (spintronics) नामक उभरती हुई तकनीक के लिए, जो डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग के लिए पारंपरिक चार्ज के बजाय इलेक्ट्रॉन के स्पिन (spin) का उपयोग करती है। यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) में प्रकाशित हुआ है।
चुंबकत्व के विभिन्न रूपों में, फेरोमैग्नेटिज्म (Ferromagnetism) में परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन स्पिन एक ही दिशा में संरेखित होते हैं, जबकि एंटीफेरोमैग्नेटिज्म (Antiferromagnetism) में, पड़ोसी परमाणुओं के स्पिन विपरीत दिशाओं में होते हैं और एक-दूसरे के चुंबकीय प्रभाव को रद्द कर देते हैं। एमआईटी के वैज्ञानिकों द्वारा निकेल आयोडाइड में खोजा गया 'पी-वेव मैग्नेटिज्म' इन दोनों का एक अनूठा संयोजन है, जिसमें इलेक्ट्रॉन स्पिन एक विशेष सर्पिल (spiral) पैटर्न में व्यवस्थित होते हैं, जो एक दूसरे के दर्पण प्रतिबिंब (mirror images) की तरह होते हैं। इस व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह कोई शुद्ध बाहरी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न नहीं करता है, फिर भी इसमें आंतरिक चुंबकीय गुण होते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि एक छोटे विद्युत क्षेत्र (electric field) का उपयोग करके इन सर्पिल स्पिन की 'हैंडेडनेस' (handedness) या दिशा को बदला जा सकता है, जो स्पिंट्रॉनिक उपकरणों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह खोज भविष्य के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए आशाजनक संभावनाएं खोलती है। हालांकि वर्तमान में यह प्रभाव केवल अत्यंत निम्न तापमान, लगभग 60 केल्विन (-213 डिग्री सेल्सियस) पर देखा गया है, शोधकर्ताओं का लक्ष्य ऐसे पदार्थों की पहचान करना है जो कमरे के तापमान पर भी इस 'पी-वेव मैग्नेटिज्म' को प्रदर्शित कर सकें। यदि यह संभव हो जाता है, तो यह कंप्यूटिंग उपकरणों की ऊर्जा दक्षता में अभूतपूर्व सुधार ला सकता है। एक शोधकर्ता, कियान सॉन्ग (Qian Song) के अनुसार, 'पी-वेव मैग्नेट' ऊर्जा की खपत को पांच गुना (five orders of magnitude) तक कम कर सकते हैं। यह नवाचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से एक अधिक टिकाऊ भविष्य बनाने की दिशा में प्रेरित करता है। इस शोध में प्रोफेसर रिकार्डो कोमिन (Riccardo Comin) और प्रोफेसर सिल्विया पिकोजी (Silvia Picozzi) जैसे वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।