अंटार्कटिक समुद्री बर्फ़ तेज़ी से घट रही है। एनएसआईडीसी (NSIDC) की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री बर्फ़ का विस्तार 1.98 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक पहुँच गया है, जो सैटेलाइट रिकॉर्ड में 2022 और 2024 के साथ दूसरे सबसे निचले स्तर पर है। इसका मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है।
इस नुकसान का अंटार्कटिक पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। 2023 में, एम्परर पेंगुइन कॉलोनियों को बड़े पैमाने पर प्रजनन विफलताओं का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी आबादी खतरे में है।
समुद्री बर्फ़ का नुकसान वैश्विक जलवायु पैटर्न को भी बाधित करता है, जिससे और अधिक तीव्र तूफ़ान आने की आशंका है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने जलवायु परिवर्तन पर "रेड अलर्ट" जारी किया है।
डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वर्तमान प्रयास अपर्याप्त हैं, जिससे दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग लक्ष्य से आगे निकलने के करीब पहुँच रही है। इसका असर भारत में भी देखने को मिल सकता है, जहाँ अनियमित मानसून और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।
यह जलवायु परिवर्तन को कम करने और आगे की अस्थिरता को रोकने के लिए वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। ऊर्जा असंतुलन में तेजी भी एक चिंता का विषय है। हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए इस धरती को सुरक्षित रखने के लिए एकजुट होकर काम करना होगा, ताकि उन्हें स्वच्छ हवा, पानी और एक सुरक्षित भविष्य मिल सके।