मानसिक स्वास्थ्य नर्स सलाहकार मारिया मज़फ़री वयस्कों में ध्यान घाटे अति सक्रियता विकार (एडीएचडी) के लिए शीघ्र पहचान और हस्तक्षेप के महत्व पर जोर देती हैं [1]।
वह न्यूरोडाइवर्जेंट व्यक्तियों के लिए देखभाल में सुधार के लिए समग्र, रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण की वकालत करती हैं [1]। भारत में, जहाँ परिवार और समुदाय का समर्थन महत्वपूर्ण है, रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण विशेष रूप से सहायक हो सकता है।
हाल के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि इंग्लैंड में लगभग 25 लाख लोगों को एडीएचडी है, फिर भी उनमें से केवल एक तिहाई को ही निदान मिला है [1]। भारत में, जागरूकता और निदान की कमी एक बड़ी चुनौती है, जिससे कई लोग बिना सहायता के रह जाते हैं [17, 18]।
मज़फ़री ने वयस्कों में एडीएचडी के लिए समझ और समर्थन बढ़ाने के लिए व्यापक प्रशिक्षण दिया है [1]। भारत में, जहाँ मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं [15]।
एडीएचडी वाले व्यक्तियों का समर्थन करने के लिए, मज़फ़री नियमित शारीरिक व्यायाम, संतुलित आहार, अच्छी नींद की स्वच्छता और सामाजिक समर्थन की सिफारिश करती हैं [1]। ये रणनीतियाँ भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य और कल्याण के समग्र दृष्टिकोण के अनुरूप हैं।
वह पर्यावरणीय संशोधनों, संगठनात्मक उपकरणों और संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी जैसी चिकित्सीय प्रथाओं का भी सुझाव देती हैं [1]। भारत में, संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (सीबीटी) जैसी थेरेपी अधिक लोकप्रिय हो रही हैं, क्योंकि वे व्यक्तियों को मुकाबला करने की रणनीतियों को विकसित करने में मदद करती हैं [16]।
इन रणनीतियों का उद्देश्य एडीएचडी से जुड़ी चुनौतियों, जैसे असावधानी, अति सक्रियता और आवेगशीलता का प्रबंधन करने में मदद करना है [1]। भारत में, जहाँ सामाजिक अपेक्षाएँ मजबूत हो सकती हैं, इन चुनौतियों का प्रबंधन करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है [19]।
शीघ्र हस्तक्षेप और समर्थन एडीएचडी वाले वयस्कों के जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार कर सकते हैं [1]। भारत में, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में सुधार और एडीएचडी के बारे में जागरूकता बढ़ाने से प्रभावित व्यक्तियों के लिए बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं [20]।